समर्थ गुरु रामदास बाबा एक सच्चे संत तथा हनुमानजी के भक्त भी थे।इनके बारे में कहा जाता है कि बाबाजी को हनुमानजी के दर्शन हुआ करते थे।एक बार बाबाजी ने हनुमानजी से कहा महाराज! आप एकदिन सब लोगों को दर्शन दें ।हनुमानजी ने कहा कि ‘ तुम लोगों को इकट्ठा करो तथा शुद्ध हरिकथा करना…
शिवताण्डव सतोत्रम्
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् । डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु न: शिव: शिवम् ।।१ ।। ( जिन्होंने जटारूप अटवी ( वन ) से निकलती हुई गंगाजी के गिरते हुये प्रवाहों से पवित्र किये गये गले में शर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारणकर , डमरू के डम- डम शब्दों से…
वेदसारशिवस्तोत्रम्
पशुनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् । जटाजूटमध्ये स्फुरदगांगवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरामि ।। पशुओं ( समस्त प्राणिमात्र ) के पति ( रक्षक ) , त्रिविध-ताप -पाप को नष्ट करनेवाले, परमेश्वर स्वरूप एवं कजचर्म धारक…
यशोदाजी के मायके से जब पंडित आये?
श्रीयशोदाजी के मायके से एक ब्राह्मण गोकुल आये।नंदरायजी के घर बालक का जन्म हुआ है,यह सुनकर आशीर्वाद देने आये थे।मायके से आये ब्राह्मण को देखकर यशोदाजी को बड़ा अानंद हुआ।पंडितजी के चरण धोकर , आदर सहित उनको घर में बिठायाऔर उनके भोजन के लिये योग्य स्थान गोबर से लिपवा दिया।पंडितजी से बोली ,देव आपकी जो…
Krishnashtakam
वसुदेव-सुतं देवं कंस-चाणूर-मर्दनम् देवकी-परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् || vasudeva-sutam devam kamsa-chAnUra-mardanam devakI-paramAnandam krishnam vande jagadgurum अतसीपुष्पसङ्काशं हार-नूपुर-शोभितम् रत्न-कङ्कण-केयूरम कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् || atasIpshpasankAsham hAra-nUpura-shobhitam ratna-kankaNa-keyuram krishnam vande jagadgurum कुटिलालक-संयुक्तं पूर्णचंद्र-निभाननम् विलसत्-कुण्ड्लधरं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् || kutilAlaka-samyuktam pUrNachandra-nibhAnanam vilasat-kundaladharam krishnam vande jagadgurum मंदारगन्ध-संयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजं बर्हि-पिच्छावचूडाङ्गं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् || mandAragandha-samyuktam chAruhAsam chaturbhujam barhi-picchAvachUdAngam…
कान्हा ने जब गोपियों की शिकायत की यशोदा मैया से।
मैया जब मैं घर से चलूँ , बुलावें ग्वालिन सादर मोय । अचक हाथ को झालो देके, मीठी बोले देवर कहके । निधरक हो जायँ साँकर देके , झपट उतारे काछनी , मुरली लेयँ छिनाय । मैं बालक ये धींगरी , इनसे कहा बसाय । खुद नाचे अरू मोयँ नचावें । क्या – क्या…
ShriNandKumarashtakam ( श्रीनंदकुमाराष्टकम् )
सुंदर गोपालं उरवनमालं नयन विशालं दु:ख हरम् , वृंदावनचंद्रम् आनंदकन्दम् परमानंदम् धरणीधरम् । वल्लभ घनश्यामं पूर्णकामं अत्यभिरामं प्रीतिकरम् , भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम् ।।१ ।। सुंदर वारिजवदनं निर्जित मदनं आनंद सदनं मुकुटधरम् , गुंजाकृतिहारं विपिनविहारं परमोदारं चीरहरम् । वलल्भ पटपीतं कृत उपवीतं कर नवनीतं विबुधवरम् , भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम् ।। २ ।।…
ShriDamodarashtkam ( श्रीदामोदराष्टकम् )
नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम् । यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ।।१ ।। ( जिनके कपोलों पर लटकते मकराकृत-कुंडल क्रीड़ा कर रहे हैं, जो गोकुल के चिन्मय धाम में परम शोभायमान हैं, जो दूध की हांडी फोड़ने के कारण माँ यशोदा से भयभीत होकर ऊखल के उपर से कूदकर अत्यन्त वेग से दौड़ रहे हैं…
व्रज भूमि के गिरिराज पर्वत ( गोवर्धन ) की कथा।
गोवर्धन पर्वत अपना सर्वस्व श्रीकृष्ण को ही मानते हैं।यह पर्वत अपने पत्र ,पुष्प ,फल ,और जल को श्रीकृष्ण का ही मानकर उन्हें सदा समर्पित करता है।जब प्रभु तथा उनके सखाओं को भूख लगती है,तो नाना प्रकार के फल उन्हें अर्पित करता है,और प्यास लगने पर अपने मधुर जल से उन्हें तृप्त करता है।प्रभु को सजाने…
कि जाने कौन से गुण पर,दयानिधि रीझ जाते हैं
कि जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं। यही सद् ग्रंथ कहते हैं, यही हरि भक्त गाते हैं । कि जाने कौन——– ———————। नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप दुर्योधन का। विदुर के घर पहुँचकर, भोग छिलकों का लगाते हैं। कि जाने कौन से ——————————। न आये मधुपुरी से गोपियों की, दु: ख…