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नवरात्र के चौथे दिन माता दुर्गा के चौथे स्वरूप ‘माता कूष्मांडा’ की पूजा की जाती है।
माता कूष्मांडा का अर्थ
माता कूष्मांडा का नाम कुम्हड़े के कारण पड़ा है, जिसे संस्कृत में “कूष्मांडा” कहा जाता है। यह देवी सृष्टि की उत्पत्ति की प्रतीक मानी जाती हैं और इन्हें आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता है।
माता का स्वरूप
माता कूष्मांडा का वाहन सिंह है। इनके आठ हाथ होते हैं, जिनमें कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र और गदा शामिल हैं। इनका यह स्वरूप शक्ति और समृद्धि का प्रतीक है।
कथा
पुराणों के अनुसार, माता कूष्मांडा ने सृष्टि की रचना की थी। जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था, तब माता ने अपनी ऊर्जा से ब्रह्मांड को आकार दिया। इसलिए इन्हें सृष्टि की जननी माना जाता है।
पूजा विधि
माता कूष्मांडा की पूजा करते समय भक्त हरे या पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। पूजा में फल, फूल, और विशेष रूप से पेठे का भोग अर्पित किया जाता है।
पूजा का फल
माता कूष्मांडा की पूजा करने से भक्तों को सभी रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह देवी ज्ञान और शक्ति प्रदान करती हैं।
पूजा मंत्र
माता कूष्मांडा का पूजन निम्नलिखित मंत्र से किया जाता है:
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
अर्थात- हे देवी, आप सुख-समृद्धि देने वाली और अष्टभुजाओं वाली हैं, मैं आपको प्रणाम करता/करती हूँ।
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