जय भगवती भवानी नमो वरदे, जय पाप विनाशिनी बहु फल दे।
जय शुम्भ निशुम्भ कपाल धरे, प्रणमामि तु देवी नरार्ति हरे।
जय चन्द्र दिवाकर नेत्र धरे, जय पावक भूषित वक्त्र वरे।
जय भैरव देह निलीन परे, जय अन्धक दैत्य विशेष करे।
जय महिष विमर्दिनी शूल करे, जय लोक समस्तक पाप हरे।
जय देवी पितामह विष्णुह नते, जय भास्कर शक्र शिरो अवनते।
जय षण्मुख सायुध ईशनुते, जय सागर गामिनी शम्भुनुते।
जय दुःख दरिद्र विनाश करे, जय पुत्र कलत्र वृद्धि करे।
जय देवी समस्त शरीर धरे, जय नाक विदारिणी दुःख हरे।
जय व्याधि विनाशिनी मोक्ष करे, जय वाञ्छित दायिनी सिद्धि वरे।
एतद् व्यास कृतं स्तोत्रं यः पठेन्नतः शुचिः,
गृहे वासुदेव भावेन प्रीता भगवती सदा।