आगम- निगम- पुरान सबैं , इतिहास सदा जिनके गुन गावैं ।
बड़भागी नर – नारी सोई , जो सांब- सदाशिव कौं नित ध्यावैं।।
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सृजन , सुपालन लय लीलाहित, जो विधि-हरि हररूप बनावैं ।
एकहि आप विचित्र अनेक, सुवेष बनाइकें लीला रचावैं ।
सुन्दर सृष्टि सुपालन करि , जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं।
बड़भागी नर- नारी सोई जो , सांब -सदाशिव कौं नित ध्यावैं ।।
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अगुन अनीह अनामय अज , अविकार सहज निज रूप धरावैं ।
परम सुरम्य बसन- आभूषण , सजि मुनि-मोहन रूप करावैं ।।
ललित ललाट बाल बिधु , विलसै , रतन-हार उर पै लहरावैं ।
बड़भागी नर-नारी सोई जो , सांब -सदाशिव कौं नित ध्यावैं ।।
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अंग विभूति रमाय मसान की , विषमय भुजंगमनि को लपटावैं ।
नर-कपाल कर मुण्डमाल गल, भालु -चर्म सब अंग उढ़ावैं ।।
घोर दिगम्बर , लोचन तीन , भयानक देखि कैं सब थर्रावैं ।
बड़भागी नर -नारी सोई जो, सांब -सदाशिव कौं नित ध्यावैं।।
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सुनतहि दीन की दीन पुकार , दयानिधि आप उबारन आवैं
पहुँच तहाँ अविलम्ब सुदारुन , मृत्यु को मर्म बिदारि भगावैं ।।
मुनि मृकंडु- सुत की गाथा सुचि, अजहु विज्ञजन गाइ सुनावैं ।
बड़भागी नर-नारी सोई जो , साँब सदाशिव कौं नित ध्यावैं ।।
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चाउर चारि जो फूल धतूर के , बेल के पात , और पानी चढ़ावैं ।
गाल बजाय कैं बोल जो , ‘ हरहर महादेव ‘ धुनि जोर लगावैं ।।
तिनहिं महाफल देय सदाशिव, सहजहि भुक्ति – मुक्ति सो पावैं ।
बड़भागी नर – नारी सोई जो , सांब – सदाशिव कौं नित ध्यावैं ।।
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बिनसि दोष दु:ख दुरित दैन्य, दारिद्रयं नित्य सुख – शांति मिलावैं।
आशुतोष हर पाप – ताप सब , निर्मल बुद्धि – चित बकसावैं।।
असरन – सरन काटि भवबन्धन , भव जिन भवन भव्य बुलवावैं।
बड़भागी नर – नारी सोई जो , सांब – सदाशिव कौं नित ध्यावै ।।
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ओढरदानी , उदार अपार जु , नैक – सी सेवा तें ढुरि जावैं ।
दमन अशांति , समन संकट , बिरद विचार जनहिं अपनावैं ।।
ऐसे कृपालु कृपामय देव के , क्यों न सरन अबहीं चलि जावैं ।
बड़भागी नर – नारी सोई जो , सांब – सदाशिव कौं नित ध्यावैं।।
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