या देवी सर्वभूतेषु, शक्ति रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
अर्थात जो देवी सब प्रकार के प्राणियों के शक्ति रूप में अवतरित हो, उनको मेरा बारंबार नमस्कार है, नमस्कार है, नमस्कार है।
सर्व सृष्टि को जन्म देने वाली अखंड मण्डलाकार जगन्माता आदि शक्ति पारब्रह्म स्वरूप हैं। माँ निर्गुण स्वरूप हैं, परंतु उन्हें किसी भी रूप में समय-समय पर धर्म की रक्षा तथा दुष्टों के विनाश के लिए साकार रूप लेना पड़ता है।इसी आदि शक्ति ने समय-समय पर पार्वती, दुर्गा, काली, चण्डी आदि नव अवतार धारण किए हैं।
ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी जो क्रमशः सृष्टि निर्माण, पालन तथा संहार करने वाले हैं, माता आदि शक्ति समस्त चराचर जगत में ऊर्जा शक्ति रूप में विद्यमान हैं। यही ऊर्जा शक्ति के कारण ही तमाम ग्रह, पिंड, उल्काएँ तथा तारा समूह स्थिर एवं चलायमान हैं।
ऐसा कुछ भी नहीं जिसमें माँ विद्यमान न हों, और यह एक अंतिम सत्य है कि प्रत्येक दृश्य या अदृश्य स्थल, स्थान, वस्तु से लेकर प्रत्येक भौतिक वस्तुओं में माँ विद्यमान हैं।
आज वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो ब्रह्मांड में अपार ऊर्जा और शक्ति की विशाल प्रणाली है, जिसके सहारे भारी से भारी कार्य, गति मान किए जा सकते हैं।
इस गतिमान जगत में मानव भी एक इकाई मात्र है जो कि ब्रह्मांड की संचालिका देवी की प्रतिबिंबित छाया से उत्पन्न होता है।
देवी के द्वारा ही समस्त चराचर पदार्थों पर प्राणों का संचार होता है तथा उसी प्रक्रिया में वह नष्ट भी होता रहता है। अतः इस नश्वर संसार में चेतना रूप में प्रकट होने से देवी को चित्त स्वरूपिणी माना जाता है।
वेदों में कहा जाता है देवी शक्ति अमर, अजन्मा और अविनाशी हैं। वही आदि हैं, वही अंत हैं, वही अनंत भी हैं।दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय में देवी के इस स्वरूप का विस्तृत वर्णन मिलता है।
असुरों के अत्याचार से त्रस्त होकर देवताओं ने जब ब्रह्मा जी से सहायता माँगी, तो ब्रह्मा जी ने कहा, “दैत्यराज को वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुमारी कन्या के हाथ से ही होगी।”
इस पर सभी देवताओं ने उपाय स्वरूप सम्मिलित होकर अपने तेज से देवी के इस रूप को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं के देह से निकले हुए तेज से देवी के विभिन्न अंग बने।
भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएँ, चंद्रमा के तेज से स्तन, इन्द्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, और ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण, सूर्य के तेज से पैरों की उंगलियाँ, वसु के तेज से दोनों हाथ की उंगलियाँ, प्रजापति के तेज से सारे दाँत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से दोनों भौहें, वायु के तेज से कान और अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने।
शिव जी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मी जी ने अपना कमल का फूल, विष्णु जी ने गदा, अग्नि ने शक्ति, वायु ने धनुष तथा बाणों से भरा तरकश, यमराज ने चमत्कारी दण्ड, काल ने तलवार, विश्वकर्मा ने निर्मल फरसा, प्रजापति ने स्फटिक मनियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, शेषनाग ने मनियों से सुसज्जित नाग, इन्द्र ने वज्र, कृष्ण जी ने अपना चक्र, वरुण देव ने पाश, ब्रह्मा जी ने चारों वेद, तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह और अनेकों प्रकार के रत्न प्रदान किए।
इसके अतिरिक्त समुद्र देव ने कभी न मैले होने वाला उज्ज्वल हार तथा कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुण्डल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगूठियाँ भेंट कीं। कुबेर ने मदिरा से भरा हुआ पात्र दिया। इन सभी वस्तुओं को देवी ने धारण किया। इस प्रकार माँ भगवती ने सभी देवताओं से सुसम्मानित होकर शक्ति स्वरूपिणी दुर्गा का रूप धारण किया।
माता के नौ (9) रूपों का वर्णन
नवदुर्गा नौ प्रकार की आध्यात्मिक शक्तियाँ हैं।
आदि शक्ति महादेवी ने दुष्टों के विनाश के लिए देवताओं की प्रार्थना पर नौ रूप धारण किए। आज भी भारत के विभिन्न शक्तिपीठों में नौ दुर्गाओं की मूर्तियाँ विद्यमान हैं। दुर्गा की इन नौ मूर्तियों, यानी नौ आध्यात्मिक शक्तियों के विभिन्न नाम इस प्रकार हैं—
1. शैलपुत्री
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शैलपुत्री ने महाराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेकर भगवान शंकर का वरण किया और विश्व कल्याण के लिए सभी देवियों का मार्गदर्शन किया, तथा गणेश एवं कार्तिकेय जैसे विद्वान पुत्रों की माता बनीं। इन्हीं के नाम से प्रथम नवरात्र का पूजन आज भी विधिवत होता है।
2. ब्रह्मचारिणीदेवी
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ब्रह्मचारिणी ने संसार को पवित्र वात्सल्य एवं प्रेम का संदेश दिया। नवरात्र का दूसरा दिन इन्हीं देवी के नाम से पूजित होता है।
3. चंद्रघंटा
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तीसरी देवी चंद्रघंटा के रूप में प्रकट हुईं। पृथ्वी पर न्याय और नीति की स्थापना के नियम बनाए। चंद्रघंटा देवी के मस्तक पर अर्धचंद्र का चिह्न अंकित रहता है। नवरात्र के तीसरे दिन इनकी पूजा होती है।
4. कूष्मांडा
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चौथी देवी कूष्मांडा ने विश्व व्यवस्था का भार उठाया, इसलिए इन्हें रोजगार की देवी भी कहा जाता है। नवरात्र के चौथे दिन कूष्मांडा माता की पूजा होती है।
5. स्कंदमाता
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पाँचवीं देवी स्कंदमाता हैं। उन्होंने समस्त चर एवं स्थिर जीवों को सोचने और समझने की शक्ति प्रदान की है। नवरात्र का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता के नाम पूजित होता है।
6. कात्यायनी
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छठी देवी कात्यायनी हैं। इन्होंने अनेक बार दुष्टों का संहार किया तथा साधु और सज्जनों की प्रतिष्ठा को कायम रखा। नवरात्र के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा होती है।
7. कालरात्रि
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सातवीं देवी कालरात्रि हैं, जिन्होंने काली का रूप धारण कर रक्तबीज जैसे राक्षस का वध किया। नवरात्र का सातवाँ दिन इन्हीं देवी के पूजन से जुड़ा है। राक्षसों के संहार के लिए कालरात्रि यानी रात्रिकाल में विकट संहार करने का माँ ने बीड़ा उठाया।
8. महागौरी
आठवीं देवी का नाम महागौरी है। उनकी सवारी शेर है। उनकी अष्ट भुजाएँ हैं। उन्होंने दुर्जेय राक्षस का वध किया। अष्टमी की रात माँ गौरी के नाम से विशेष पूज्य है।
9. सिद्धिदात्री
नौवीं देवी सिद्धिदात्री हैं। हर प्रकार के तंत्र-मंत्र एवं ज्ञान-कौतुकी भंडार की देवी सिद्धिदात्री को नवरात्र की नवमी को पूजा जाता है।
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