माता कूष्मांडा का वाहन सिंह है। इनके आठ हाथ होते हैं, जिनमें कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र और गदा शामिल हैं। इनका यह स्वरूप शक्ति और समृद्धि का प्रतीक है।
माँ दुर्गा का तृतीय रूप माता चन्द्रघण्टा
माता चंद्रघंटा का नाम उनके मस्तक पर घंटे के आकार के अर्धचंद्र के कारण पड़ा। यह देवी शक्ति और शांति का प्रतीक मानी जाती हैं। माता चंद्रघंटा को पापों का नाशक और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली देवी माना जाता है।
जय भगवती भवानी नमो वरदे – माँ भगवती स्त्रोत्र
जय भगवती भवानी नमो वरदे, जय पाप विनाशिनी बहु फल दे।
जय शुम्भ निशुम्भ कपाल धरे, प्रणमामि तु देवी नरार्ति हरे।
जय चन्द्र दिवाकर नेत्र धरे, जय पावक भूषित वक्त्र वरे।
माँ दुर्गा का द्वितीय रूप माँ ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी का अर्थब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। माता ब्रह्मचारिणी को तपश्चारिणी भी कहा जाता है
नवरात्रि की महिमा – नवदुर्गा के स्वरुप
जानिये नवरात्रि की महिमा क्या है और नवदुर्गा के स्वरुप और उनकी शक्तियां कौन सी हैं
Naam Jap Practice Resources – नाम जप अभ्यास करें
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कृष्ण द्वारा राधा जी की प्रेम परीक्षा Radha ji ki Prem Pariksha
एक बार श्री कृष्ण को राधा रानी की परीक्षा लेने की इच्छा हुई। तो उन्होंने अपना भेस बदल एक ग्वालिन का रूप बनाया और बरसाने, जहाँ राधारानी रहती थी, चले गए। जब राधारानी ने उस ग्वालीन को देखा, तो वह अत्यंत प्रसन्न हो उठीं। उनके मन के हर्ष का कारण यह था कि उस ग्वालिन…
भोले नाथ के मन मोहक भजन और स्त्रोत्र संग्रह
श्री रुद्राष्टकम् – नमामीशमीशान lyrics in sanskrit
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ….
यह पोस्ट “श्री रुद्राष्टकम्” का वर्णन करती है, जिसमें भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया गया है। इसमें शिव के निराकार, निर्वाण एवं करुणामय स्वरूपों का उल्लेख है। भक्त इसे भाव और भक्ति से पाठ करते हैं, ताकि वे शांति और सुख प्राप्त कर सकें। शिव को तुषार, गभिर और दयालु कहा गया है, जो सर्व प्राणी के अंतःकरण में निवास करते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को मनोबल और आत्मिक शक्ति मिलती है। शिव की स्तुति करके, वे कठिनाइयों से मुक्ति और आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं।
Premanand ji Maharaj – Krodh par Niyantran
साधक क्रोध पर नियंत्रण कैसे रखे? परम पुज्य प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं की साधक को क्रोध का वेग दांत पीस के सह लेना चाहिए और नाम जप पर ध्यान लगाना चाहिए|क्रोध के मूल में काम है और नाम जप से ही विजय प्राप्त होगी |(वीडियो में 13:16 min से सुनें)