जब जब होता नाश धरम का और पाप बढ़ जाता है
तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शान्ति पाता है ।।
जब कंस के अत्याचारों से यह भूमंडल बेहाल हुआ,
और विप्र संत त्यागी बैरागी का पापी महाकाल हुआ ।।
जब पृथ्वी के हर आँसू पर टुकड़े टुकड़े पाताल हुआ,
तब गर्भ से सती देवकी के उत्पन्न आठवाँ लाल हुआ ।।
फिर वसुदेव निज लाल को मथुरा से गोकुल ले जाता है ,
अवतार पालने में झूले गान्धार लोरियाँ गाता है ।।
जब जब होता नाश धरम का और पाप बढ़ जाता है
तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शान्ति पाता है ।।
जब मिट्टी खाते कान कुंवर को धारा यशोदा मईया ने,
मू खोलके सारा विश्व दिखाया माँ को कृष्णा कन्हैया ने ।।
दही मटकी फोड़ी माखन खाया मोहन माखन चोर बने ,
कहीं यमुना तट पर चीर गोपियों के हरकर बरज़ोर बने ।।
कहीं मौत बकासुर की आती अन्यायी मारा जाता है ,
और काली नाग के दर्प दलन से श्याम श्याम कहलाता है ।।
जब जब होता नाश धरम का और पाप बढ़ जाता है
तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शान्ति पाता है ।।
था प्रभुने ब्रिज की रक्षा के हित दावानल का पान किया,
मथुरा गोकुल वृन्दावन का निज चरणो से उत्थान किया।।
जब यज्ञ रुका था इंद्रदेव का क्रोध किया असुरारी ने ,
तब उँगली पर पर्वत रोका हंसकर गोवर्धन धारी ने ।।
काँधे कमलिया हाथ बाँसुरिया मोर मुकुट मन भाता है,
गोपाल से गौ रक्षा का यूँ उपदेश हमें मिल जाता है ।।
जब जब होता नाश धरम का और पाप बढ़ जाता है
तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शान्ति पाता है ।।
फिर कामधेनु और देवराज ने मोहन का अभिषेक किया,
और वरूण के बंधन से नटवर ने नंदपिता को छुड़ा लिया ।।
ब्रिज़बालाओं और गोपियों को मोहन ने मोह लिया ,
और राधा के व्याकुल हृदय ने उन्हें पुकारा पिया पिया ।।
तब रास रचाकर रास रचाइया मुरली मधुर बजाता है,
नर में नारी नारी मे नर यह भेद हमें समझाता है ।।
जब जब होता नाश धरम का और पाप बढ़ जाता है
तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शान्ति पाता है ।।
थी इधर रास में बंसी बजती उधर सुदर्शन चलता था,
इस तरह कंस का एक एक बलधारी योद्धा मरता था ।।
जब घड़ा पाप का भरा तो देखा मथुरा के नर नारी ने ,
फिर डँस कंस का किया देवकीनन्दन कृष्णा मुरारी ने ।।
फिर नाच उठा पृथ्वी का कण कण गगन पुष्प बरसाता है ,
जो कथा भागवत के सुनता भवसागर से तर जाता है ।।
जब जब होता नाश धरम का और पाप बढ़ जाता है
तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शान्ति पाता है ।।
Source : प्रभु की माया