या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ।।
जो दर्शन पथ में आने पर सारे पाप-समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श किये जाने परशरीर को पवित्रबनाती है, प्रणाम किये जाने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचे जाने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित किये जाने पर भगवान् श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान् के चरणों में चढ़ाये जाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसीदेवी को नमस्कार है। ( ( (पद्मपुराण )