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एक राजा तीर्थयात्रा के लिये चला।उसके काफिले में एक गरीब आदमी भी था।वह दो धोती,थोड़ा गेहूँ का आटा तथा कुछ गिने चुने सामान यात्रा के लिये साथ लाया था।उसने देखा सर्दी के कारन एक व्यक्ति काँप रहा है,उसने अपनी दो धोती मे से एक धोती उस व्यक्ति को दे दिया।धोती पाकर वह व्यक्ति बहुत ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देकर चला गया।
सुबह के समय अत्यधिक सर्दी तथा दोपहर में कड़ी धूप होती थी।पर जब काफिला दोपहर में यात्रा कर रहा होता था,तब बादलों की छाया साथ-साथ उनके रहती थी।सब लोग कहते हमारे राजा धर्मात्मा हैं , इसलिये ऐसा हो रहा है।
एक आदमी ने कहा – कौन जाने,किसका प्रताप है? यह बात राजा के सामने रखी गयी।राजा ने भी कहा,बात तो ठीक ही है , न जाने किसका प्रताप है? इसलिये एक-एक आदमी चलो,देखें बादल किसके साथ चलता है?
इस तरह एक-एक कर सब चले गये।परन्तु बादल वहीं ठहरा रहा क्योंकि वह गरीब जिसने अपनी दो धोती में ही एक धोती का दान किया था, वह वहाँ उस वक्त सोया हुआ था।जब वह चलने लगा तो बादल भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा।अब यह निश्चय हो गया कि बादल इसी गरीब आदमी के ऊपर है।राजा ने उससे पूछा कि तुमने आखिर क्या दान किया कि बादल तुम्हारे साथ चला।गरीब आदमी बड़ी विनम्रता के साथ बोला,मैं गरीब आपलोगों का सहारा लेकर यहाँ तक आया हूँ,मेरे पास दान करने लायक कोई चीज ही नहीं,कि मैं पुण्य-धर्म करूँ।राजा ने कहा,तुम घर से क्या लाये थे,उसने कहा- दो धोती और थोड़ा आटा रास्ते के लिये।
अब एक ही धोती है।राजा ने कहा ,दूसरी कहाँ गई।उसने कहा एक आदमी ठण्ढ से कष्ट पा रहा था,उसे दे दी।टोली में एक महात्मा भी साथ थे,उन्होंने कहा कि एक धोती दान का यह महात्म्य है।राजा ने कहा महाराज! मैं तो लाखों रुपये दान करता हूँ,महात्मा ने कहा- पुण्य धर्म का लाभ रूपयों के पीछे नहीं है।एक रूपये से जो लाभ मिल जाता है वो लाखों रूपये के दान में भी नहीं मिलता।दान का असली महत्व तो मौके पर,तथा अभाव में होते हुये भी दूसरे के दर्द को समझना,ये अधिक महत्व रखता है।
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