श्री राधा कृष्ण के भक्त, श्री सनातन गोस्वामी तथा श्री रूप गोस्वामी बृदावन में रहते हुए प्रभु की भक्ति करते थे।दोनो सन्त प्रभु की भक्ति में कुछ भी रचना करते तो , एक दूसरे को सुनाया करते थे।कभी भजन, कभी कविता या राधे कृष्ण की कथा करते और दोनों ही भक्ति में भाव विभोर हो जाया करते थे।
एक दिन दोनों हरि चर्चा कर रहे थे कि , श्री सनातन गोस्वामी ने श्री रूप गोस्वामी से पूछा, आजकल आप क्या लिख रहे हैं? श्री रूप गोस्वामी ने अपनी रचना उन्हें दिखाया, जिसमें उन्होंने श्री राधा जी के सुन्दर लहराते वेणी की उपमा काली नागिन से किया था।श्री सनातन गोस्वामी को राधा रानी के वेणी की तुलना काली नागिन से करना उचित नहीं लगा, और उन्होंने इस उपमा को संशोधन करने के लिये अनुरोध किया।श्री रूप गोस्वामी ने मुस्कुराते हुये कहा , ठीक है सोचूँगा और दोनों एक दूसरे से विदा ले वहाँ से चले गए।
बृन्दावन में राधाकुण्ड से आगे झूलनतला नामक स्थान है,जब श्री सनातन गोस्वामी वहाँ से गुजर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि कदम्ब के पेड़ पर एक अत्यन्त रूपवती किशोरी कन्या झूला झूल रही है और अन्य सखियाँ उन्हें झूलाते हुये सुन्दर गीत गा रही हैं।गोस्वामी जी ने झूलती हुई कन्या के वेणी पर काली नागिन को लहराते देखा।गोस्वामी जी यह दृश्य देखकर घबड़ा गये,और उस कन्या को बचाने के लिये वहीं से चिल्लाने लगे, लाली तुम्हारे बालों में साँप है,कहीं तुम्हें काट न ले।
परन्तु जब गोस्वामी जी,किशोरी के पास पहुँचे तो हैरान रह गए।वहाँ न झूला था, न झूलती हुई कन्या और न उनकी कोई सखियाँ थी।गोस्वामी जी को अब एहसास होने लगा कि राधा रानी का ही चमत्कार था, और वो खुशी से नाचने लगे।गोस्वामी जी वापस श्री रूप गोस्वामी के पास जाकर कहने लगे, आपने विल्कुल सही उपमा दिया था।किशोरी जी मुझपर अनुग्रह कर अपने सौंन्दर्यमयी वेणी का दर्शन करवा दियाअब इसमें संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है।आपकी दी हुई उपमा ही सर्वथा उपयुक्त है।
।। जय श्री राधे ।।