आरती श्रीबृषभानु लली की ।
सत – चित – आनंद- कंद – कली की ।। टेक ।।
भयभंजिनि भव – सागर – तारिनि ,
पाप – ताप – कलि – कल्मष – हारिनि ,
दिब्यधाम – गोलोक – बिहारिनि ,
जनपालिनि जगजननि भलीकी ।। १ ।।
अखिल बिस्व आनंद – बिधायिनि ,
मंगलमयी सुमंगलदायिनि ,
नंदनंदन – पद – प्रेम प्रदायिनि ,
अमिय – राग – रस – रंग – रलीकी ।।२ ।।
नित्यानंदमयी अाह्लादिनि ,
आनंदघन – आनंद – प्रसाधिनि ,
रसमयी , रसमय – मन – उन्मादिनि ,
सरस कमलिनि कृष्ण – अलीकी ।। ३ ।।
नित्य निकुंजेस्वरी रासेस्वरि ,
परम प्रेमरूपा परमेस्वरी ,
गोपिगणाश्रयि गोपिजनेस्वरि ,
बिमल – बिचित्र – भाव – अवलीकी ।। ४ ।।
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