हल्दी के आयुर्वेद में अनेक गुण बताये गये हैं।धार्मिक कार्यों में हल्दी को मंगलकारी बताया गया हैं कोई भी शुभ कार्य हल्दी के बिना सम्पन्न नहीं होता। इसके अतिरिक्त हल्दी सौंदर्यवर्धक रक्तशोधक तथा एंटिसेप्टिक होती है।आयुर्वेद में कफ, वात, सूजन, कृमि , पित्त और अपचन घाव खुजली रक्तशोधक, तथा त्वचा के रोग में भी हल्दी उपयोगी साबित होता है।
सर्दी, खाँसी में —गरम–दूध में ( एक ग्लास ) चुटकी भर हल्दी डालकर गरम – गरम ( पीने लायक ) पीने से सर्दी तथा खाँसी में आराम मिलता है।साबुत हल्दी के छोटे टुकड़े को सेककर सोते समय मुँह में रखकर चूसते रहने से जुकाम, कफ तथा खाँसी में लाभ होता है।
पेट के कृमि में —२ से ४ वर्ष के बच्चे को यदि पेट में कीड़े की शिकायत हो तो आधा ग्राम हल्दी समान मात्रा में गुड़ के साथ गोली बनाकर तीन – चार दिनों तक रात में सोने से पहले खिलाएँ।
चोट एवं सूजन —– चोट लगने पर उस पर हल्दी का लेप किया जाता है, यदि सूजन भी हो तो हल्दी के साथ खाने का चूना मिलाकर हल्का गरम कर सूजन पर लेप करने से दो तीन बार में ही सूजन तथा चोट ठीक हो जाता है।
गला बैठना —— एक ग्लास गर्म दूध में एक छोटा चम्मच हल्दी डालकर पीने से ( दो से तीन बार ) आवाज खुल जाता है।
मसूढ़ों की सूजन में —– मसूढ़ों में सूजन तथा दर्द होने पर एक चम्मच सरसों के तेल में आधा चम्मच सेंधा नमक तथा चुटकी भर पिसी हुई हल्दी लेकर उँगलियों से दाँतों की मालिस करने से 7-8 दिनों में ही लाभ मिलता है।
चोट- मोच आदि में —— मांसपेशियों की आंतरिक मरम्मत के लिये एक ग्लास गाय का दूध में दो चुटकी शुद्ध हल्दी पिसी हुई डालकर नियमित एक सप्ताह तक पीने से चोट में आराम मिल जाता है।
हड्डियों के लिये—— दूध और हल्दी उबाल कर लेने से हड्डियों में मजबूती आती है ,क्योंकि यह कैल्सियम पूर्ति का भी स्रोत है।