मंगल भवन अमंगल हारी ।
द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी ।।
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाड़्ग सीतासमारोपितवामभागम् ।
पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ।।
रामायण प्रभु श्रीराम की कथा है, जिन्हें श्रवण करने से या पाठ करने से पाप ताप संताप (त्रयताप ) का नाश होता है।रामायण को राम रूप भी कहा गया है।रामायण में सात काण्ड हैं। ये सात काण्ड सात सुन्दर सीढ़ियाँ हैं, जो श्रीरघुनाथजी की भक्ति को प्राप्त करने के मार्ग हैं।जिस पर श्रीहरि की अत्यन्त कृपा होती है, वही इस मार्ग पर पैर रखता है।
बाल काण्ड—–रामायण का प्रथम अध्याय बालकाण्ड है ।प्रभु श्रीराम के चरण समान हैं।जहाँ प्रभु के चरण पड़ते हैं, वहाँ जय जयकार होती है।बालक के समान निश्छल, निष्कपट तथा अभिमान रहित जिसका मन है अर्थात जिसका मन सरल है, वही प्रभु को पा सकता है।प्रभु ने रामायण में स्वयं कहा है—–निर्मल मन जन सो मोहे पावा। मोहे कपट छल छिद्र न भावा ।।
अयोध्याकाण्ड—– श्रीराम का अवतार अयोध्या में हुआ।अयोध्या का अर्थ है न युद्धा भवति अर्थात जहाँ युद्ध न हो।जैसे राम सबसे प्रेम करते हैं, यदि हम भी इसी तरह सबसे प्रेम करें तो प्रभु श्रीराम जैसे अयोध्या में प्रकट हुए वैसे ही हमारे अंदर भी प्रकट होंगे।अपना सर्वस्व प्रभु के चरणों में अर्पित कर हमें प्रेमपूर्वक जीवन निर्वाह करना चाहिए।
अरण्यकाण्ड ———अरण्यकाण्ड में प्रभु श्रीराम ने अयोध्या के महल तथा वहाँ का वैभव का त्याग कर वन गमन किया।मन में सन्यास धारण किया। पिता की आज्ञा से उन्होंने चौदह वर्षों तक का वनवास स्वीकार किया।वन जाते समय उनके मुख पर कोई दु:ख नहीं था ।श्रीराम तो पिता के वचन का मान रख रहे थे। मन से सन्यासी प्रभु श्री राम के चरणों में हमें भी उनकी भक्ति के सिवा और कोई इच्छा नहीं होनी चाहिये। माया मोह स्वार्थ लोभ अहंकार को तजकर अपना सर्वस्व प्रभु को समर्पित कर उनकी शरण ग्रहण करना चाहिये।
वनवासी सीताराम को, लक्ष्मण सहित प्रणाम ।
जिनके सुमिरन भजन से , होत सफल सब काम ।।
किष्किन्धाकान्ड ——–किष्किन्धाकाण्ड जहाँ प्रभु श्रीराम की मुलाकात हनुमान से हुई।हनुमान ने सुग्रीव को प्रभु से मिलाया तथा सुग्रीव का दु:ख मिटाया था।किष्किन्धाकाण्ड प्रभु का कंठ स्वरूप है।प्रभु जिसे अपना जानकर गले से लगा लेते हैं,उसके सारे दु:ख दूर कर, जन्म मरण के चक्र से भी मुक्त कर देते हैं।
हनुमान सुसंयम ब्रह्मचारी, प्रभु को निज पीठ पर बिठाया था ।
राम सुकंठ पास पहुँचाय उनको, सुग्रीव का दु:ख मिटाया था ।।
सुन्दरकाण्ड ——-सुन्दरकाण्ड का रहस्य है , हनुमान जी के तरह सुन्दर और निर्मल हृदय बनें ,हनुमान जैसे हृदय में सीता रामजी को धारण करते हैं, हर पल हर क्षण सुमिरन करते रहते हैं , वैसे ही हमें भी प्रभु को अपने मन मंदिर मे बिठाकर उनका सुमिरन करते रहना चाहिये।सुन्दरकाण्ड मे हनुमानजी की लीलाओं का वर्णन है। राम चरित मानस का पाठ करने से प्रभु श्रीरामजी के साथ- साथ हनुमानजी भी प्रसन्न होते हैं।
सुन्दरकाण्ड रामायण का सबसे सुन्दर काण्ड।
पढ़े सुने जो सादर सदा , पाप ताप हो नाश ।।
सुन्दर श्री हनुमान के , सुन्दर ही सब खेल ।
पावन सीता राम का , करवाते हैं मेल ।।
लंकाकाण्ड ——–लंकाकाण्ड में प्रभु श्रीराम ने रावण का वध कर समस्त संसार को सुखी किया । रावण अर्थात काम, क्रोध, मोह तथा अहंकार का नाश कर शांति स्थापित किया।रावण मोह रूपी अविद्या का नाम है जो हर मनुष्य के अंदर है।इसे समाप्त किये बिना सच्ची शांति नहीं मिल सकती है।
उत्तरकाण्ड——-प्रभु श्रीराम ने रावण का संहार कर राम राज्य स्थापित किया । जब मन से सारे विकार दूर हो जाते हैं तभी ज्ञान तथा भक्ति का प्रकाश उदित होता है और जीवात्मा तथा परमात्मा दोनों एक स्वरूप होते हैं।
दोहा- राम चरन रति जो चह अथवा पद निर्बान ।
भाव सहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान ।।
जो श्रीरामजी के चरणों में प्रेम चाहता हो या मोक्ष पद चाहता हो , वह इस कथारूपी अमृत को प्रेम पूर्वक अपने कान रूपी दोने से पिये ।जो मनुष्य रघुवंश के भूषण श्रीरामजी का यह चरित्र कहते हैं , सुनते हैं और गाते हैं, वे कलियुग के पाप और मन के मल को धोकर बिना ही परिश्रम श्रीरामजी के परम धाम को चले जाते हैं।