नंद भवन के आँगन में श्यामसुन्दर ,अपने छोटे- छोटे चरणों से चलना सीख रहे हैं।मैया यशोदा कान्हा की अँगुली पकड़कर साथ – साथ घूम रही हैं।कान्हा के चलने से ,उनके छोटे छोटे पैंजनी के रुनझुन बजने की आवाज यशोदा मैया को हर्षित कर रही है।मोहन के कानों के कुंडल तथा भौंहों तक सुन्दर घुँघराले बालों की लटें लटकती हुई अत्यन्त शोभा दे रही है।पृथ्वी पर ठुमक – ठुमक कर कन्हा अपना चरण रखते हैं कि कहीं गिर न जायें।कभी गिरते हैं तो तुरंत उठ खड़े हो जाते हैं।अब उन्हें चलना अच्छा लगने लगा है।घर से आँगन तक चलना अब कान्हा के लिए सुगम हो गया है, किन्तु देहली लाँघा नहीं जाताहै, लाँघने में बड़ा परिश्रम होता है, बार – बार गिर पड़ते हैं।देहली लाँघते नहीं बन बनता।
कान्हा जब देहली पार करते समय बार बार गिरते हैं ,तो उनकी इस क्रीड़ा से देवताओं तथा मुनियों के मन में भी संदेह उत्पन्न होने लगता है कि यह कैसी लीला है प्रभु की ? जो करोड़ों ब्रह्मांण्डों का एक क्षण में निर्माण कर देते हैं और फिर उनको नष्ट करने में भी देर नहीं लगाते, उन्हें आँगन की देहली , माँ यशोदा हाथ पकड़ कर धीरे – धीरे पार कराती हैं।बलरामजी यह देखकर मन ही मन कहते हैं — ‘ वामन अवतार में पूरी पृथ्वी तीन पग में नापने वाले प्रभु से , घर की देहली पार करना कठिन हो रहा है।सूरदासजी कहते हैं यह दृष्य देख – देख कर देवतागण तथा मुनि भी अपनी विचार शक्ति खोकर मुग्ध हो जाते हैं।