कार्तिक मास में कृष्णपक्ष के चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है।इस दिन गणेश जी का पूजन होता है ।इस दिन सुहागन स्त्रीयाँ अपने पति की लम्बी आयु के लिये व्रत रखती है।प्राचीन काल में द्विज नामक ब्राह्मण के सात पुत्र और एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था।वीरावती विवाह के बाद प्रथम बार करवा चौथ का व्रत कर रही थी।भूख प्यास से व्याकुल होने के कारन मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ी।बहन को इस अवस्था में देखकर वीरावती के भाइ परेशान होकर रोने लगे और जल से मुँह धुलवाकर, एक भाई वट के वृक्ष पर चढ़कर चलनी में दीपक दिखाकर बहन से कहा कि चन्द्रमा निकल आया है।बहन ने भी उस अग्निरूप को चन्द्रमा समझ कर अर्ध दे कर भोजन के लिये बैठी। पहले कौर में बाल निकला , दूसरे कौर में छींक हुई, तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया।ससुराल जाने पर उसने देखा , उसका पति मृत पड़ा है ।बहन ने सोचा मैंने तो एेसा कोई अपराध नहीं किया, जिस पाप का दण्ड मुझे मिल रहा है।सारे संसार की नारियाँ आज अपने सुहाग की शुभ कामना तथा दीर्घायु के लिये पूजा कर रही हैं, और मेरे पति इस अवस्था में पड़े हैं।वीरावती विलाप करने लगी।तभी वहाँ इन्द्राणी आई ,विलाप करती हुई इरावती बोली हे माँ ! यह किस अपराध का मुझे दण्ड मिला। माँ ! मेरे पति को जीवित कर दो । माँ से उसने प्रार्थना करते हुये कहा। इन्द्राणी ने कहा कि तुमने करवा चौथ व्रत में बिना चाँद निकले चन्द्रमाँ को अर्ध दे दिया था , यह सब उसी के फल से हुआ है अत: अब तुम बारह माह के चौथ के व्रत व करवाचौथ व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ विधिपूर्वक करो तब तुम्हारा पति पुन: जीवित हो जायेगा।इन्द्राणी के वचन सुन वीरावती ने विधि पूर्वक बारह माह के चौथ तथा करवाचौथ व्रत को बड़ी भक्ति – भाव के साथ किया और इस व्रत के प्रभाव से वीरावती का पति पुन: जीवित हो उठा ।इस तरह करवाचौथ व्रत से जैसे वीरावती के सुहाग की रक्षा हुई , वैसे ही माता सभी स्त्रियों के सुहाग की रक्षा करें।