“श्री राधा और कृष्ण का , है परम प्रेम जग से न्यारा ।
यह रहस्य समझना मुश्किल है,इसे समझे कोई प्रभु का प्यारा।।”
राधा रानी तथा श्री कृष्ण का प्रेम अलौकिक है। श्री कृष्ण और राधा रानी का विबाह बसंतपंचमी के दिन हुआ था।द्वापर युग में श्रीकृष्ण तथा राधा रानी पृथ्वी पर अवतार लेकर अपनी लीला कर रहे थे ।ब्रह्माजी ने स्वयं श्रीकृष्ण तथा राधा जी का विबाह बसंत पंचमी के दिन संपन्न करवाया था।
१६वी शताब्दी मेंपश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर के रहने वाले कृष्ण दास जी अपने गुरू से दीक्षा लेकर वृन्दावन जाकर रहने लगे।कृष्ण दास जी वहीं रहकर प्रभु श्रीकृष्ण तथा राधा रानी की भक्ति करने लगे।राधा कृष्ण की रास स्थली (निधिवन) की साफ- सफाई भी बड़े प्रेम से वहाँ रहते हुए करते थे।एक दिन वो साफ सफाई का काम कर रहे थे,कि उन्हें मणि माणिक्य से जड़े हुए एक नुपुर उन्हें वहाँ पड़ हुआ मिला।नुपुर की सुंदरता तथा बनाबट देखकर कृष्ण दास जी विस्मित रह गए।उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि इतनी सुंदर नुपुर अवश्य ही राधा रानी का हो सकता है।
कृष्ण दास जी के मन में अब राधा रानी के दर्शन की इच्छा होने लगी।इधर राधा जी को भी यह मालूम हो गया कि मेरा एक नुपुर कृष्ण दास जी को मिल गया है।राधा जी ने अपना नुपुर लाने के लिये अपनी सखी ललिता से कहा।ललिता जी वृद्ध ब्राह्मणी का रूप धरकर कृष्ण दास जी के पास गई,और नुपुर लौटाने का आग्रह करने लगी।ललिता जी ने कहा मेरी स्वामिनी का एक नुपुर यहाँ खो गया था ,जो आपको मिल गया है, आप मुझे वापस दे दीजिये।
कृष्ण दास जी तो राधा जी के दर्शन की इच्छा लेकर बैठे थे, इसलिये उन्होंने कहा मैं ये नुपुर आपकी स्वामिनी को ही दूँगा ,लेकिन उनके पास ऐसा ही,अर्थात इसका दूसरा जोड़ा होने चाहिये।राधा जी उनके हृदय की बात जान गई थी, वो समझ चुकी थी,बिना दर्शन किये कृष्ण दास जी मानने वाले नहीं हैं।अत: ललिता जी से राधा जी ने कहा कृष्ण दास जी को जाकर राधा मन्त्र प्रदान करो और फिर राधाकुन्ड में स्नान कराओ ताकि कृष्ण दास जी को राधा रानी के दर्शन की पात्रता प्राप्त हो जाये।इसके बाद राधा रानी का दर्शन उन्हें प्राप्त हुआ। राधा रानी का वे बिना पलक झपकाये दर्शन कर ही रहे थे,कि अचानक उन्हें राधा जी के विरह का ध्यान आया।कृष्ण दास उदास हो गए।राधा जी ने उन्हें कृष्ण जी का श्री विग्रह रूप प्रकट कर कृष्ण दास जी को दिया।जिस दिन श्री कृष्ण दास जी को राधा जी कृष्ण जी का श्री विग्रह प्राप्त हुआ था,कहा जाता है कि उस दिन भी बसंत पंचमी ही था।
भरत पुर के राजा ,जिनके पास खजाने में स्वयं प्रगटित राधा रानी का श्री विग्रह रूप था,वृंदावन जाकर( १५८०) बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर श्री कृष्ण जी के साथ विबाह करवा दियाऔर वृंदावन में श्री राधा श्यामसुंदर का विशाल मंदिर भी बनवाया।
श्री कृष्ण दास जी के बाद उनके परम शिष्य श्री रसिकानन्द जी श्री राधा कृष्ण मंदिर की सेवा करते रहे।श्री रसिकानन्द जी के बाद उनके ही वंशज मंदिर की सेवा कर रहे हैं।आज भी बसंत पंचमी को राधा कृष्ण मंदिर में , श्री राधा कृष्ण जी का आविर्भाव तथा उनके विबाह का आयोजन होता है, और वहाँ अनेक श्रद्धालु तथा भक्त सम्मिलित होते हैं।
” जय श्री कृष्ण “