श्री कृष्ण तुम्हारे चरणों में, मैं अरज सुनाने आई हूँ।
वाणी में तनिक मिठास नहीं, पर तुम्हें रिझाने आई हूँ ।श्री कृष्ण
प्रभु का चरणामृत पाने को , मेरे पास कोई है पात्र नहीं ।
आँखों के दोनों प्यालों में , कुछ भीख माँगने आई हूँ ।।श्री कृष्ण
तुमसे पाकर तुमको ही क्या भेंट धरूँ,भगवन , तुम्हारे चरणों में।
मैं भिक्षुक हूँ, तुम दाता हो, यही संबंध बताने आई हूँ।।श्री कृष्ण
सेवा की कोई वस्तु नहीं, फिर भी मेरा साहस इतना।
रो रोकर अपने अँसुवन का , मैं हार चढ़ाने आई हूँ।।श्री कृष्ण