गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै:शास्त्रविस्तरै: ।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद् विनि:सृता ।।
भगवदगीता पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली है, इसलिये हमें नित्यप्रति ध्यानपूर्वक तथा श्रद्धापूर्वक श्रवण तथा पठन करना चाहिये।आज समस्त वैदिक साहित्य का अध्ययन कर पाना सम्भव नहीं है। भगवदगीता समस्त वैदिक साहित्य का सार है, और इसका प्रवचन स्वयं भगवान ने गीता में किया है। ( गीता माहात्म्य ४ )
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दन: ।
पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ।।
यह गीतोपनिषद् , भगवदगीता, जो समस्त उपनिषदों का सार है , गाय के तुल्य है , और ग्वालबाल के रूप में विख्यात भगवान् कृष्ण इस गाय को दुह रहे हैं। अर्जुन बछड़े के समान हैं , और सारे विद्वान तथा शुद्ध भक्त भगवदगीता के अमृतमय दूध का पान करने वाले हैं। ( गीता माहात्म्य ६ )
एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम् ।
एको देवो देवकीपुत्र एव ।
एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि ।
कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ।।
आज के युग में लोग एक शास्त्र , एक ईश्वर , एक धर्म तथा एक कर्म के लिए अत्यन्त उत्सुक हैं।अतएव एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम्—-केवल एक शास्त्र भगवदगीता हो जो सारे विश्व के लिए हो।एको देवो देवकीपुत्र एव—सारे विश्व के लिये एक ईश्वर हो–श्रीकृष्ण। एको मन्त्रस्तस्य नामानि –और एक मन्त्र ,एक प्रार्थना हो–उनके नाम का कीर्तन : हरे कृष्ण , हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण , हरे हरे । हरे राम , हरे राम , राम राम हरे हरे । कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा—केवल एक ही कार्य हो—पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर श्रीकृष्ण की सेवा । ( गीता माहात्म्य ७ )
ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानन्दविग्रह:—-कृष्ण पूर्ण ब्रह्म हैं। परम नियंता हैं।सत् का अर्थ है -“शाश्वत” , चित का अर्थ है– “ज्ञान “तथा आनन्द का अर्थ —“आनन्द” तो है ही ।अर्थात ईश्वर ज्ञानमय , आनन्दमय तथा शाश्वत हैं।
इसलिये हमें भगवान कृष्ण की अनन्य भक्ति करनी चाहिए और अर्जुन की तरह ही उन पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिये।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।।
भगवान श्रीकृष्ण गीता ( १८-६६) के अंतिम अंश मे जोर देकर अर्जुन से कहते हैं—“सब धर्मों को त्याग कर एकमात्र मेरी ही शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें समस्त पापों के फलों से मुक्त कर दूँगा। डरो मत ।”इस प्रकार भगवान अपनी शरण में आये हुए भक्त का पूरा उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लेते हैं और उसके समस्त पापों के फलों को क्षमा कर देते हैं।
।। जय श्रीकृष्ण ।।