मैं हूँ श्री भगवान का , मेरे श्री भगवान ।
अनुभव यह करती रहूँ , साधन सुगम महान ,।।
प्रभु के चरणों में सदा , पुनि पुनि करूँ प्रणाम ।।
कहूँ कभी भूलूँ नहीं , मेरे प्रभु श्री राम ।।
बार बार बर माँगउँ ,हरषि देहू श्री रंग ।
पद सरोज अनपायनी भक्ति सदा सत्संग ।।
बिगड़ी जनम अनेक की ,अब हीं सुधारूँ आज।
होहिं राम का नाम जपूँ , तुलसी तज कुसमाज ।।
नहीं बुद्धि नहीं बाहुबल , नहीं खरचन को दाम।
मों सो अपंग पतित की ,पत राखो श्री राम।।
मों सम दीन न दीन हित , तुम समान रघुवीर ।
अस बिचारी रघुवंश मनि, हरहूँ विषम भवभीर।।
एक भरोसो एक बल , एक आस विश्वास ।
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।।
राम नाम मनि दीप धरूँ , जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहर हीं , जो चाहसि उजियार ।।