ताहि देइ गति राम उदारा । शबरी कें आश्रम पगु धारा ।।
शबरी देखि राम गृहँ आए । मुनि के बचन समुझि जियँ भाए ।।
सरसिज लोचन बाहु बिसाला । जटा मुकुट सिर उर बनमाला ।।
स्याम ग़ौर सुंदर दोउ भाई । शबरी परी चरन लपटाई ।।
प्रेम मगन मुख बचन न आवा । पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा ।।
सादर जल लै चरन पखारे । पुनि सुंदर आसन बैठारे ।।
कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि ।
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि ।।
पानि जोरि आगे भइ ठाढी । प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी ।।
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी । अधम जाति मैं जड़मति भारी ।।
अधम ते अधम अधम अति नारी । तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी ।।
कह रघुपति सुनु भामिनि बाता । मानउँ एक भगति कर नाता ।।
जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई । धन बल परिजन गुन चतुराई ।।
भगति हीन नर सोहइ कैसा । बिनु जल बारिद देखिअ जैसा ।।