श्रीराधारानी – चरण बंदौं बारंबार ।
जिन के कृपा कटाच्छ तैं रीझैं नंदकुमार ।।
जिनके पद – रज – परस तें स्याम होयँ बेभान ।
बंदौं तिन पद – रज -कननि मधुर रसनि के खान।।
जिनके दरसन हेतु नित , बिकल रहत घनस्याम ।
तिन चरनन मैं बसै मन मेरौ आठौं याम ।।
जिन पद पंकज पै मधूप मोहन दृग मँडरात।
तिन की नित झाँकी करन मेरौ मन ललचात ।।
‘ रा ‘ अक्षर कौं सुनत हीं मोहन होत बिभोर ।
बसैं निरन्तर नाम सो ‘ राधा ‘ नित मन मोर ।।
दो०— बंदौं श्रीराधाचरन पावन परम उदार ।
भय -बिषाद -अग्यान हर प्रेमभक्ति- दातार।।
श्री ‘ललिता ‘ — श्री ‘ ललिता ‘ लावण्य ललित सखि
गोरोचन आभा युत अंग ।
बिद्युदवर्णि निकुंज – निवासिनि ,
वसन रुचिर शिखिपिच्छ सुरंग ।।
इन्द्रजाल – निपुणा , नित करती
परम स्वादु ताम्बूल प्रदान ।
कुसुम – कला – कुशला , रचती कल
कुसुम – निकेतन कुसुम – वितान ।।
सखी ‘ विशाखा —– सखी ‘ विशाखा विद्युत – वर्णा ,
रहती बादल – वर्णा कुँज
तारा – प्रभा सुवसन सुशोभित ,
मन नित मग्न श्याम – पद – कंज ।।
कर्पूरादि सुगन्ध – द्रव्य युत
लेपन करती सुन्दर अंग ।
बूटे – बेल बनाती , रचती
चित्र विविध रूचि अँग – प्रत्यंग।।
‘ चित्रा ‘ — अंग – कांति केसर सी
काँच प्रभा से वसन ललाम।
कुंज – रंग किंजल्क कलित अति,
शोभामय सब अंग सुठाम ।।
विविध विचित्र वसन – आभूषण
से करती सुन्दर श्रृंगार ।
करती सांकेतिक अनेक
देशों की भाषा का व्यवहार ।।
सखी ‘ इन्दुलेखा ‘ —– सखी ‘ इन्दुलेखा ‘ शुचि करती
शुभ – वर्ण शुभ कुंज निवास ।
अंग कांति हरताल सदृश रँग
दाड़िम कुसुम वसन सुखरास ।।
करती नृत्य विचित्र भंगिमा
संयुत नित नूतन अभिराम ।
गायन विद्या निपुणा , व्रज की
ख्यात गोपसुन्दरी ललाम ।।
‘चंपकलता ‘—— कांति चम्पा सी,
कुंज तपे सोने के रँग ।
नीलकण्ठ पक्षी के रँग के,
रुचिर वसन धारे शुचि अँग।।
चावभरे चित चँवर डुलाती
अविरत निज कर – कमल उदार ।
द्युत – पंडिता , विविध कलाओं
से करती सुन्दर श्रृंगार ।।
सखी ‘ रंगदेवी ‘——- सखी रंगदेवी बसती अति
रुचिर निकुंज , वर्ण जो श्याम ।
कांति कमल केसर सी शोभित ,
जवा कुसुम – रँग वसन ललाम ।।
नित्य लगाती रुचि कर – चरणों
में यावक अतिशय अभिराम ।
अास्था अति त्यौहार व्रतों में ,
कला – कुशल शुचि शोभाधाम ।।
सखी ‘ तुंगविद्या ‘ ——- सखी तुंगविद्या अति शोभित
कान्ति चन्द्र , कुंकुम सी देह ।
वसन सुशोभित पीत वर्ण वर ,
अरुन निकुंज , भरी नव नेह ।।
गीत -वाद्य से सेवा करती
अतिशय सरस सदा अविराम ।
नीति – नाट्य – गन्धर्व – शास्त्र —
निपुणा रस आचार्या अभिराम ।।
सखी ‘ सुदेवी ‘—– सखी ‘ सुदेवी ‘ स्वर्ण- वर्ण – सी,
वसन सुशोभित मूँगा रंग ।
कुंज हरिद्रा – रंग मनोहर
करती सकल वासना – भंग ।।
जल निर्मल पावन सुरभित से
करती जो सेवा अभिराम ।
ललित लाड़ली की जो करती
बेणी – रचना परम ललाम ।।
अष्ट सखी करतीं सदा , सेवा परम अनन्य ।
राधा – माधव – युगल की , कर निज जीवन धन्य।।
इनके चरण सरोज में , बारम्बार प्रणाम।
करूणा कर दें श्रीयुगल – पद – रज – रति अभिराम ।।