एक समय की बात है , महर्षि वाल्मीकि वन में विचरण कर रहे थे । वन की शोभा अत्यन्त रमणीय थी ।वन में तरह – तरह के जीव – जन्तु तथा पक्षियों का बसेरा था।महर्षि जहाँ खड़े थे , उनके पास ही दो सुन्दर पक्षी स्नेहपूर्ण भाव से एक दूसरे के साथ रमण कर रहे थे।दोनों आपस में बहुत ही खुश लग रहे थे।उसी समय एक व्याध वहाँ आया और दोनों मे से एक को निर्दयतापूर्वक बाण से मार गिराया।यह देख महर्षि को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने वहीं बह रही सरिता का पवित्र जल हाथ में लेकर उस ब्याध को शाप दिया – ओ निरपराध पक्षी की हत्या करने बाले , तुझे कभी शाश्वत शान्ति नहीं मिलेगी, क्योंकि तूने इन पक्षियों में से एक को मारकर , जो काम से मोहित हो रहा था,दूसरे को एकाकी कर दिया।
यह वाक्य छन्दोबद्ध श्लोक के रूप में अचानक महर्षि के मुख से निकला, मुनि के शिष्य जो आस- पास थे प्रसन्न होकर कहने लगे , मुनिश्रेष्ठ यह छन्द तो बहुत सुन्दर श्लोक बन गया है।उसी समय ब्रह्माजी वहाँ प्रगट हुए और वाल्मीकिजी से कहने लगे,महर्षि ! आप धन्य हैं सरस्वतीजी आपके मुख में विराजमान होकर श्लोक रूप में प्रकट हुई हैं।इसलिये अब आप मधुर अक्षरों में सुन्दर रामायण की रचना कीजिये।मुख से निकलने वाली वही वाणी धन्य है जो श्रीरामनाम से युक्त हो।अत: आप अयोध्या के राजा दशरथजी के पुत्र श्रीरामचन्द्रजी के लोक प्रसिद्ध चरित्र को लेकर काव्य रचना कीजिये, जिससे आगे चलकर पग – पग पर पापियों के पाप का निवारण होगा।इतना कहकर ब्रह्माजी अन्तर्धान हो गये।
एक दिन वाल्मीकिजी नदी तट पर ध्यान में थे कि श्रीराम उनके हृदय में प्रकट हुये।नील पद्मदल के समान श्याम विग्रह वाले कमलनयन श्रीरामचन्द्रजी का दर्शन पाकर मुनि बड़े प्रसन्न हुये।मुनि को उनका भूत,वर्तमान तथा भविष्य तीनों काल के चरित्र का साक्षातकार हुआ।उसके बाद वाल्मीकिजी ने प्रभु श्रीराम की आज्ञासे रामायण की रचना सुन्दर छन्दों में किया।रामायण में ६: काण्ड हैं— बालकाण्ड , आरण्यककाण्ड , किष्किन्धाकाण्ड , सुन्दरकाण्ड , युद्धकाण्ड , तथा उत्तरकाण्ड ।
बालकाण्ड—- बालकाण्ड में राजा दशरथ के चार पुत्र , जो उन्होंने पुत्रेष्ठि यज्ञ करके प्राप्त किये थे । भगवान विष्णु अपने अंशो सहित उनके चारों पुत्रों के रूप में राजा दशरथ के घर पधारे थे।चारों भाईयों के गुरूकुल शिक्षा , उनके गुरू वशिष्ठ के आश्रम में होने के पश्चात, गुरू विश्वामित्र के यज्ञ में जाना , वहाँ से मिथिला में जाकर धनुष भंग कर राजा जनक की पुत्री सीता संग विवाह करना, अयोध्या में युवराज पद पर अभिषेक होने की तैयारी , और तत्पश्चात माता कैकेयी के कहने से प्रभुश्रीराम का अपने अनुज तथा पत्नी सीता के साथ वन जाना , गंगा पार करके चित्रकूट पर्वत पर सीता और लक्ष्मण के साथ निवास करना अादि प्रसंगों का उल्लेख है।उनके छोटे भाई भरत को जब ये ज्ञात होता है कि प्रभु श्रीराम उनकी कारण वन चले गये हैं तो वे उन्हें मनाने चित्रकूट पर्वत पर जाते हैं, और जब वे रामजी को नहीं लौटा सके तो स्वयं भी अयोध्या का राजभवन छोड़ कर नंदिग्राम में कुटिया बनाकर वास करते हैं।
आरण्यकाण्ड ——अरण्यकाण्ड में प्रभु श्रीराम अपने भाई लक्षमण तथा पत्नी सीता के साथ वन में निवास करते हैं , तथा ऋषि मुनियों के दर्शन करते हैं ।पंचवटी में रहते हुये सूर्पनखा का लक्षमण द्वारा नाक काटना, खर और दूषण का विनाश , मारीच जो माया से सोने का हिरण बनकर आया था, उसका भी बध करना , रावण के द्वारा सीताजी का हरण, श्रीराम का विरहाकुल होकर सीता की खोज में वन – वन भटकना तथा मानव की तरह ही लीला करना ,कबन्ध से मुलाकात, शबरी की कुटिया में जाकर उन्हें दर्शन देना , पम्पासरोवर पर जाना और फिर हनुमानजी से मिलना ये सभी कथायें अारण्यकण्ड में आते हैं।
किष्किन्धाकाण्ड —— किष्किन्धाकाण्ड में सुग्रीव से मिलना, बालि का अद्भुत बध तथा सुग्रीव का लक्षमण द्वारा राज्यभिषेक तथा कर्तव्यपालन का संदेश देना सुग्रीव द्वारा सैन्यसंग्रह कर सीताजी की खोज में वानरों का भेजा जाना, सम्पाति से वानरों की भेंट , जामवंतजी द्वारा हनुमानजी को समुद्र लाँघने के लिये प्रेरित करना और फिर हनुमानजी का समुद्र लाँघकर लंका में प्रवेश करना ये सभी प्रसंग आता है।
सुन्दरकाण्ड——- सुन्दरकाण्ड जिसे रामायण का हृदय स्वरूप कहा गया है जहाँ प्रभु श्रीराम की अद्भुत कथा का वर्णन है।हनुमानजी का माता सीता की खोज लंका भवन में घूम-घूम कर प्रत्येक स्थान पर करना , विभीषन से मिलना, लंका में रहते हुये भी विभीषण का श्रीराम की भक्ति करना ,विभीषण की सहायता से सीताजी का अशोक वाटिका में दर्शन करना तथा रामजी का संदेश देना ,अशोक वाटिका का विध्वंस , लंका के राक्षसों द्वारा हनुमानजी का बंधन तथा उनके पूँछ में अाग लगाना, हनुमानजी के द्वारा लंका दाह और फिर सीतामाता का संदेश तथा चिन्ह स्वरूप चूड़ामणि लेकर वापस समुद्र लाँघकर आना वानरों से मिलना , प्रभु श्रीराम को सीताजी के द्वारा दी हुई चूड़ामणि अर्पण करना , रामजी की सेना का लंका के लिये प्रस्थान , समुद्र में पुल बाँधना , सेना में रावण के दूत , शुक और सारण का छल से प्रवेश , ये सभी प्रसंग सुन्दरकाण्ड में दिया गया है।