बड़े प्रेम से खाई प्रभु ने,करमा बाई की खिचड़ी।
कौन समझ सकता ,प्रभु की लीला आश्चर्य भरी,
बड़े प्रेम से खाई प्रभु ने , करमा बाई की खिचड़ी ।
अति पग ,इक तन, तिलक छाप युत, बड़े बड़े आचारी,
उत्तम कुल में जन्म कहावे, पंडित और पुजारी ।
छप्पन भोग ,छतीसो ब्यंजन, भरी स्वर्ण की थाली,
तुलसी दल और मंत्र सहित कछु और ही भोग लगाई,
बिना प्रेम सब सामग्री ,रह जाए धरी धरी ।
बड़े प्रेम से…………………………………………….।
करमा बाई भक्ति मति अति , हरि को लाड़ लड़ावे ,
बालक जान श्यामसुन्दर को, हृदय सदा अकुलावे।
जगते जगते भूख लगेगी, मचल कहीं न जाये ,
बड़े सबेरे बिना नहाये, खिचड़ी नित्य बनावे ।
बाहर तो अपवित्र , हृदय में पावन प्रीत भरी ,
बड़े प्रेम से…………………………………….।