अपना नहीं जग में कोई , निशिदिन भजो श्री भगवान रे।
पैर दिये तीरथ करने को, हाथ दिये करो दान रे ।
अपना नहीं जग में कोई, निशिदिन भजो श्री भगवान रे।
दान बिना सर झुक जाये, नहीं मिल पाये सम्मान रे ।
अपना नहीं जग में कोई , निशिदिन भजो श्री भगवान रे।
दाँत दिये मुख की शोभा को, जिह्वा दी कर हरि गान रे।
अपना नहीं जग में कोई, निशिदिन भजो श्री भगवान रे।
आँखें दी हरि दर्शन को,कान दिये सुन ग्यान रे ।
चित्त दियो प्रभु के चिन्तन को, मन दिये कर प्रभु ध्यान रे।
अपना नहीं जग में कोई, निशिदिन भजो श्री भगवान रे……२