स्वयं में अनेकों कमियाँ होने के बावजूद , मैं अपने अाप से इतना प्यार कर सकता हूँ,
तो फिर दूसरों में थोड़ी बहुत कमियाँ को देखकर, उनसे घृणा कैसे कर सकता हूँ।
– स्वामी विवेकानन्द जी