मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै
जैसे उड़े जहाज को पंछी
फिरी जहाज पर आवै
कमल नयन को छाड़ि महातम
और देव को ध्यावै
परम गंग को छाड़ि पियासौ
दुरमति कूप खनावै
जिहिं मधुकर अंबुज रस चाख्यौ
क्यों करील फल खावै
सूरदास प्रभू कामधेनु तजि
छेरी कौन दुहावै
Bansuri Bajaye Aachhe Rang Saun Murari(बाँसुरी बजाई आछे रंग सौं मुरारी)।सूरदास जी के पद।…………………………………………
बाँसुरी बजाई आछे रंग सौं मुरारी
सुनि कै धुनि छूटि गई संकर की तारी
वेद पढ़न भूलि गये ब्रहमा ब्रहमचारी
रसना गुन कहि न सकै
ऐसी सुधि बिसारी
इन्द्र सभा थकित भइ
लगी जब करारी
रंभा की मान मिट्यो
भूली नृतकारी
जमुना जू थकित भई
नहीं सुधि संभारी
सूरदास मुरली है
तीन लोक प्यारी।
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(ref. sur sagar saar)