।।ओम् नमश्चण्डिकायै ।।
मार्कण्डेय उवाच:
ओम् यद् गुह्यं परमं लोके
सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं
तन्मे ब्रूहि पितामह ! ।।१ ।।।
मार्कण्डेय जी ने कहा है —हे पितामह! जो साधन संसार में अत्यन्त गोपनीय है, जिनसे मनुष्य मात्र की रक्षा होती है, वह साधन मुझे बताइए ।