नारदजी पूर्वजन्म में एक दासीपुत्र थे।उनकी माता भक्तों की जब सेवा करती थी, नारदजी भी उनके काम में सहायता करते थे।कभी- कभी माता की अनुपस्थिति में वे स्वयं भक्तों की सेवा करते रहते थे।नारदजी स्वयं कहते हैं — उच्छिष्टलेपाननुमोदितो द्विजै: सकृत्स्म भुंजे तदपास्तकिल्बिष: । एवं प्रवृत्तस्य विशुद्धचेतस- स्तद्धर्म एवात्मरुचि:…