प्रह्लाद पुत्र विरोचन , केशिनी नाम की एक अनुपम सुन्दरी कन्या के स्वयंवर में विवाह की इच्छा से पहुँचा।केशिनी सुधन्वा नाम के ब्राह्मण से विवाह करना चाहती थी।केशिनी ने विरोचन से पूछा — विरोचन ! ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं या दैत्य ? यदि ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं , तो मैं ब्राह्मण पुत्र सुधन्वा से ही विवाह करना पसंद करूँगी ।विरोचन ने कहा , हम प्रजापति की श्रेष्ठ संतानें हैं, अत: हम सबसे उत्तम हैं । हमारे सामने देवता भी कुछ नहीं हैं तो , ब्राह्मण श्रेष्ठ कैसे हो सकते हैं।
केशिनी ने कहा इसका निर्णय कौन करेगा? सुधन्वा ब्राह्मण जानता था कि ,दैत्य राज प्रह्लाद यहाँ के राजा हैं तथा धर्मनिष्ठ भी।अत: प्रह्लाद जी के पास जाने का प्रस्ताव सुधन्वा ने रखा।विरोचन को विश्वास था कि पिताजी तो निर्णय अपने पुत्र के पक्ष में ही देंगे।अत: विरोचन तथा सुधन्वा ने प्राणों की बाजी लगा लिया ।अब केशिनी सुधन्वा तथा विरोचन तीनों प्रह्लाद जी की सभा में पहुँचे।
प्रह्लाद ने अपने सेवकों से सुधन्वा ब्राह्मण के सत्कार के लिये जल तथा मधुपर्क मँगाया तथा बड़े ही भाव से ब्राह्मण के चरण धुलवाकर आसन बैठने को दिया तथा पूछा कि आपने यहाँ आने का कष्ट कैसे किया? सुधन्वा ने कहा ! मैं तथा आपका पुत्र विरोचन प्राणों की बाजी लगाकर यहाँ अाये हैं , कि क्या ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं अथवा विरोचन ?
प्रह्लादजी यह सुनकर गंभीर हो गये।उन्होंने कहा , ब्रह्मण ! मेरे एक ही पुत्र है और इधर धर्म , मैं भला कैसे निर्णय दे सकता हूँ ? विरोचन ने कहा – राजन ! नीति जो कहती है , उसके आधार पर ही निर्णय कीजिये ।प्रह्लादजी ने अपने पुत्र से कहा– विरोचन ! सुधन्वा के पिता ऋृषि अंगिरा , मुझसे श्रेष्ठ हैं , इनकी माता , तुम्हारी माता से श्रेष्ठ हैं तथा सुधन्वा तुमसे श्रेष्ठ है । अत: तुम सुधन्वा से हार गये हो।सुधन्वा आज से तुम्हारे प्राणों का मालिक है।
सुधन्वा बोला– प्रह्लाद !तुमने स्वार्थवश असत्य नहीं कहा है। तुमने धर्म को स्वीकार करते हुये न्याय किया है , इसलिये तुम्हारा पुत्र मैं तुम्हें लौटा रहा हूँ लेकिन केशिनी के समक्ष इसे मेंरा पैर धोना पड़ेगा।विरोचन समझ गया , और स्वेक्षा से सुधन्वा ब्राह्मण के पैर धोकर आशीर्वाद लिया।