मेरा बाँका कन्हैया, दुलारा कन्हैया,
सबकी आँखों का तारा कन्हैया।
हे देवकी नंदन, जशोमति लाल कन्हैया।
मैं जी रही थी जीवन। कुछ इस तरह अपनी,
उदास और निराशा भरी,बेनाम जिन्दगी।
थाम कर ऊँगली मेरी, मुझे आगे को बढ़ाया ,
मेंरे थके हुये जीवन में,फिर से बहार आया।
तुम्हारी एक नज़र ही मुझको जीवन में ख़ुशी देती है,
मैं क्या कहूँ ,कि तुम मेरे क्या हो कन्हैया ।
जबसे मेरे जीवन में तुम, आये हो कन्हैया,
थाम कर पतवार तुम चला रहे हो मेरी नैया।
एहसास जब होता है मुझे, आँखे नम हो जाती मेरी,
मैं नहीं मेरे आँखों की अश्रु,बयाँ सब कुछ कर जाती है।
तुम्हीं मेरे सच्चे मीत हो कन्हैया,
मैं क्या कहूँ कि तुम मेरे ,क्या हो कन्हैया।
हे देवकी नंदन, जशोमति लाल कन्हैया।